1 वास्तु शास्त्र से जुड़ी विशेष बातें
बोलचाल की भाषा में वास्तु का अर्थ रहने की जगह यानि घर या निवासस्थान होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पंच तत्व के बीच सामंजस्य स्थापित करने की विघा है। वास्तु शास्त्र कला, विज्ञान, खगोल विज्ञान और ज्योतिष को मिलाकर बनाया गया है। यह माना जाता है कि वास्तुशास्त्र हमारे जीवन को बेहतर बनाने एवं नकारात्मकता को दूर रखने में मदद करता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो वास्तुशास्त्र हमें नकारात्मक तत्वों से दूर सुरक्षित वातावरण में रखता है। वास्तुशास्त्र सदियों पुराना विज्ञान है, जिसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन सम्मिलित हैं, जो किसी भी भवन निर्माण में बहुत अधिक महत्व रखते हैं। इनका प्रभाव मानव की जीवन शैली एवं रहन सहन पर पड़ता है। whats is vastu sastra ?
ऊर्जा स्रोत में चुंबकीय, थर्मल और विद्युत ऊर्जा भी शामिल होगी। जब हम इन सभी ऊर्जाओं का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं तो इनका प्रभाव आप पर पड़ना स्वभाविक ही है। ये प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार का हो सकता है।
वास्तु को किसी भी प्रकार के घर, मंदिर या ऑफिस के लिए उपयोग किया जा सकता है। ताकि हमारे आस पास बहने वाली उर्जा के नकारात्मक प्रभाव से बचा जा सके। चुंबकीय, थर्मल और विद्युत ऊर्जा के संयोजन में अगर गड़बड़ी होती है तो इसका प्रभाव हमारे शरीर और विचरों को नकारात्मर रूप से प्रभावि करने लगता है।
जिस प्रकार हर ऊर्जा को रखने का एक सही स्थान होता है जैसे- यदि आप पानी को हाथ में रखेंगे तो कुछ नहीं होता लेकिन जब आप ऐसा आग के साथ करेंगे तो आपका हाथ जल जाएगा।
वास्तु शास्त्र ऊर्जाओं में संयोजन बनाए रखने का काम करता है ताकि इसका उपयोग मानव कल्याण के लिए किया जा सके। प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश (पंच तत्व) के बीच परस्पर क्रिया होती है, जिसका प्रभाव इस पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव पर पड़ता है। इन पांच तत्वों के बीच होने वाली परस्पर क्रिया को वास्तु शास्त्र कहा गया है। वास्तु शास्त्र पांच तत्वों की क्रियाओं का विज्ञान है।
2 जीवन में वास्तु का महत्व
माना जाता है कि वास्तु शास्त्र हमारे जीवन को सुगम बनाने एवं कुछ अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षा करने में हमारी मदद करता है। एक तरह से वास्तु शास्त्र हमें नकारात्मक ऊर्जा से दूर सुरक्षित वातावरण में रखता है। उत्तर भारत में मान्यता अनुसार वास्तु शास्त्र वैदिक निर्माण विज्ञान है, जिसकी नींव विश्वकर्मा जी ने रखी है। जिसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन सम्मिलित हैं, जो किसी भवन निर्माण में अत्यधिक महत्व रखते हैं।
भूखंड की शुभ-अशुभ दशा का अनुमान वास्तुविद आसपास उपस्थित वस्तुओं को देखकर लगाते हैं। भूखंड की किस दिशा की ओर क्या स्थित है और उसका भूखंड पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस बात की जानकारी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के विश्लेषण से प्राप्त होती है।
यदि वास्तु सिद्धांतों व नियमों के अनुरूप भवन निर्माण करवाया जाए तो भवन में रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय होने की संभावना प्रबल हो जाती है। प्रत्येक मनुष्य की इच्छा होती है कि उसका घर सुंदर, सुखदायी व सकारात्मक ऊर्जा का वास हो, जहां रहने वालों का जीवन सुखद एवं शांतिमय हो। इसलिए आवश्यक है कि भवन वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप निर्मित हो और उसमें कोई वास्तु दोष न हो।
यदि घर की दिशाओं में या भूमि में दोष है तो उस पर कितनी भी लागत लगाकर मकान क्यों न खड़ा किया जाए, फिर भी उसमें रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय नहीं होगा। मुगल कालीन भवनों, मिस्र के पिरामिड आदि के निर्माण-कार्य में भी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों व नियमों का सहारा लिया गया था।